छोटे छोटे सवाल –२५
फिर अचानक अपने-अपने काम का ध्यान आया तो सबसे पहले गनेशीलाल वहाँ से उठे। उनके साथ ही चौधरी नत्थूसिंह भी उठ खड़े हुए। अब सत्यव्रत का वहाँ बैठना फ़िजूल था। हाथ जोड़ते हुए वह उठा तो लालाजी भी छड़ी सँभाले हुए साथ ही उठ लिए और चलते हुए सत्यव्रत के कन्धे पर हाथ रखकर सनेह से कहा, "तुम कल उत्तमचन्द से मिलकर अपनी नियुक्ति का पत्र अवश्य ले लेना, भय्या !"
सत्यव्रत का मस्तक स्वयमेव श्रद्धा से नत हो गया। उसे लालाजी में वह गंगा-तटवासी स्वामीजी दिखाई दिए जो 'श' को 'स' बोला करते थे मगर जिनकी दृष्टि भविष्य में झाँकती थी। उसने अपने इंटरव्यू के विषय में सोचा तो लगा कि यद्यपि गनेशीलाल और चौधरी साहब के प्रश्न भी चारित्रिक दृष्टि से बड़े महत्त्व के थे, पर लालाजी के प्रश्नों जैसी गहराई उनमें न थी।
गूँगे की दुकान (अध्याय-3) राजपुर एक मामूली-सा गन्दा कस्बा सही किन्तु राजपुर की शाम अनन्त सौन्दर्य लेकर आती है। आकाश पर कुछ आकृतियाँ उभरती हैं और अबाबीलों की तरह पंख खोलकर धीरे-धीरे धरती पर उतरने लगती हैं। शहर के चारों ओर खड़े खजूर के मनहूस-से पेड़ सतर्क प्रहरियों की तरह तन जाते हैं। लखीरी ईटों के उदास खंडहरों पर लज्जा की लाली दौड़ जाती है। सोन नदी का काला जल सुनहरा हो उठता है। और छोटे तालाब के चारों और गोलाकार खड़े जामुन, नीम और खजूर के वृक्ष सामूहिक नृत्य की मुद्रा धारण कर लेते हैं।